Home Pradesh Bihar पद्मश्री डॉ.एस.आर. रंगनाथन को भारतीय पुस्तकालय विज्ञान

पद्मश्री डॉ.एस.आर. रंगनाथन को भारतीय पुस्तकालय विज्ञान

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पद्मश्री डॉ.एस.आर. रंगनाथन को भारतीय पुस्तकालय विज्ञान

ध्रुव कुमार सिंह, मुजफ्फरपुर, बिहार

पद्मश्री डॉ.एस.आर. रंगनाथन को भारतीय पुस्तकालय विज्ञान के जनक के रूप में याद किया जाता है-  प्रो.ओमप्रकाश राय

लंगट सिंह महाविद्यालय में लाइब्रेरी साइंस के जनक डॉ.एस आर रंगनाथन का जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया. मौके पर प्राचार्य प्रो.ओमप्रकाश राय ने लाइब्रेरी जगत में डॉ.रंगनाथन के योगदान की चर्चा करते हुए कहा कि उन्हें एक शिक्षक और पुस्तकालय विज्ञान के जनक के रूप में याद किया जाता है. डॉ.एस.आर.रंगनाथन का जन्म शियाली, मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में हुआ था. उनकी शिक्षा शियाली के हिन्दू हाई स्कूल, टीचर्स कॉलेज, सइदापेट में हुई थी. मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में उन्होंने 1913 और 1916 ईस्वी में गणित में बी.ए.और एम.ए.की उपाधि प्राप्त की.1917 में उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज, कोयंबटूर और 1921-23 के दौरान प्रेजडिंसी कॉलेज, मद्रास विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया.1924 में रंगनाथन को मद्रास विश्वविद्यालय का पुस्तकालय अध्यक्ष बनाया गया और इस पद की योग्यता हासिल करने के लिए वह यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए.1925 से मद्रास में उन्होंने यह काम पूरी लगन से शुरू किया और 1944 तक इस पद पर बने रहें.1945-47 के दौरान उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय पुस्तकाध्यक्ष और पुस्तकालय विज्ञान के प्राध्यापक के रूप में कार्य किया. सन 1947-54 के दौरान उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया.1954-57 के दौरान वह ज्यूरिख, स्विट्जरलैंड में शोध और लेखन में व्यस्त रहे. इसके बाद वह भारत लौट आए और 1959 तक विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में अतिथि प्राध्यापक रहे.1962 ईस्वी में उन्होंने बैंगलोर में प्रलेखन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र (DRTC) स्थापित किया और इसके प्रमुख बने एवं जीवनपर्यंत इससे जुड़े रहे. 1957 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित किया. उनके जन्मदिन 12 अगस्त को पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस (Librarians Day) के रूप में मनाया जाता है,,प्रो.राय ने कहा कि पुस्तकें मनुष्य को बेहतर जीवन चरित्र निर्माण करने में अमूल्य योगदान देते हैं. पुस्तकों ने आज के आधुनिक युग में डिजिटल स्वरूप धारण किया हैं और दुनियाभर का साहित्य इंटरनेट और यांत्रिक संसाधनों के द्वारा हमारे पास पहुंच गया हैं, जिसे हम कभी भी, कही भी पढ़ सकते हैं. ई-साहित्य ऑनलाइन लाइब्रेरी के रूप में उपलब्ध हैं, लेकिन पुस्तकालयों में उपलब्ध गुणवत्तापूर्ण साहित्य संग्रह के योग्य व्यवस्थापन और बेहतर सेवा सुविधा द्वारा ही पुस्तकालय के उद्देश्य की पूर्ति हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि पुस्तक सभी छात्रों का सबसे बेहतर मित्र है तथा  देश-दुनिया में जितने भी सफल बुद्धिजीवी हैं, उनके जीवन में भी पुस्तकों के लिए विशेष स्थान होता है. पुस्तकों से उनकी दोस्ती होगी तब छात्र मोबाइल, सोशल मीडिया, ऑनलाइन गेमिंग से दूर होंगे और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे. प्रो राय ने कहा कि कॉलेज की समृद्ध और ऐतिहासिक लाइब्रेरी के डिजिटाइजेशन तथा ऑटोमेशन की प्रक्रिया चल रही है तथा जल्दी ही पुरानी धरोहर पुस्तकों और मैगजीन को सॉफ्ट कॉपी में सहेजने की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. कार्यक्रम में प्रो.राजीव झा, डॉ.एस.एन अब्बास, डॉ. नवीन कुमार, डॉ.ललित किशोर, डॉ.गुंजन, डॉ.इम्तियाज, मनोज कुमार शर्मा, ऋषि कुमार, रोहित कुमार मौजूद रहे।

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