Home India सुपात्र को दान दिए बिना घर श्मशान के समान होता है-आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी

सुपात्र को दान दिए बिना घर श्मशान के समान होता है-आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी

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सुपात्र को दान दिए बिना घर श्मशान के समान होता है-आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी

नीमच   जब भी किसी सुपात्र को दान साधु संत को दान करें
तो मन पवित्र,आहार निर्दोष और भाव भी पवित्र होना चाहिए। बहता पानी शुद्ध
होता है। उसी प्रकार विचरण करते संत चलते-फिरते पवित्र तीर्थ समान होते हैं।
सुपात्र को दान दिए बिना घर शमशान के बराबर होता है। संत घर-घर भिक्षा और
गांव-गांव विहार करता है। इससे समाज शक्तिशाली ऊर्जावान गतिमान सजग रहता है।संत
समाज और दूसरों के कल्याण के लिए निरंतर परिश्रम का पुरुषार्थ करता है इसलिए उसकी
आत्मा पवित्र रहती है।यह बातश्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पाश्र्वनाथ मंदिर
ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र
सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे
चातुर्मास के उपलक्ष्य में मिडिल स्कूल मैदान के समीप जैनआराधना भवनघ् में
आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि परमात्मा की आज्ञा में
रहने वाला ही पवित्र और सच्चा मानव होता है।यदि हमारा नौकर भी आज्ञा नहीं
माने तो वह भी हमें प्रिय नहीं लगता है।इसी प्रकार परमात्मा की आज्ञा नहीं
मानेंगे तो हम भी परमात्मा के प्रिय नहीं बन पाएंगे। परमात्मा करुणा के सागर
होते हैं हमें जो कुछ इस संसार में मिलता है यह परमात्मा की कृपा से ही मिलता
है।देवगुरु धर्म आर्य कुल और आर्य देश में जन्म मिला है यह हमारे पुण्य का ही
फल होता है। मानव पुण्य और पाप दोनों साथ-साथ करता है तो मोक्ष में
नहीं जा सकता है इसलिए अगर मोक्ष जाना है तो 12 व्रत का पालन करना होगा तभी
आत्म कल्याण का मार्ग मिल सकता है परमात्मा की अंतिम देशना यही है कि पाप के
मार्ग को बंद कर दो और पुण्य के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ते रहो। पांच माह बीत
गए हैं चातुर्मास में किस प्रकार प्रवचन होते रहे और समय निकल गया और किसी को पता
ही नहीं चला यह सभी का चातुर्मास के प्रति समर्पण भाव दर्शाता है।श्री संघ अध्यक्ष
अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा
एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि
ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला।

आतिशबाजी त्याग एवं धर्म संस्कार ग्रहण पर64 बच्चों का किया सम्मान,
इस अवसर पर 64 बच्चों को पटाखे आतिशबाजी नहीं छोड़ने तथा धार्मिक
पाठशाला में संस्कार ग्रहण करने के उपलक्ष्य में बैग शिक्षण और खेल सामग्री
प्रदान कर सम्मान किया गया।समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया।उपवास, एकासना,
बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है।धर्मसभा का संचालन सचिव
मनीष कोठारी ने किया। शीतलहर के बावजूद सैकड़ो धर्माव लंबी समाज जन
कार्यक्रम में उपस्थित थे।
महाराज श्री ने कहा कि गुरुवाणी अमृत प्रवचन शुभ योग से मिलते हैं यह पुण्य का
ही फल होता है साधु संत की सेवा का पुण्य कभी निष्फल नहीं जाता है। साधु संत
सजगऔर सुरक्षित है तो धर्म सुरक्षित है और धर्म सुरक्षित है तो समाज सुरक्षित है
समाज सुरक्षित है तो राष्ट्र सुरक्षित है राष्ट्र सुरक्षित है तो संसार सुरक्षित है।

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