पहले एफआईआर करने के बाद, अब विश्वविद्यालय ने गठित की 04 सदस्यीय जांच समिति, मामले को रफा-दफा करने की चर्चाएं गर्म
ध्रुव कुमार सिंह, मुज़फ्फरपुर, बिहार,
बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय में उत्तर पुस्तिकाओं के गायब करने एवं गबन करने के मामले में विगत दिनों दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के प्रशासनिक अधिकारी ललन कुमार पर चाेरी-चुपके विभिन्न परीक्षाओं से संबंधित मूल्यांकित 17 लाख उत्तर पुस्तिकाएं बेचने के मामले में कुलपति डॉ.(प्रो.) दिनेश चंद्र राय के आदेश पर विश्वविद्यालय थाने में सरकारी संपत्ति गायब करने के साथ गबन करने की प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। इससे पूर्व की पुलिस प्रशासन अपनी जाँच प्रारम्भ करता विश्वविद्यालय द्वारा अब प्राथमिकी दर्ज कराने के बाद चार सदस्यीय जांच समिति गठित कर दिया गया. पहले एफआईआर करने के बाद, अब विश्वविद्यालय ने गठित की 04 सदस्यीय जांच समिति करनें के निर्णय की शिक्षा जगत में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है. विश्वविद्यालय सूत्रों के अनुसार विश्वविद्यालय का यह कदम अदूरदर्शिता का प्रतीक है. मामला संज्ञान में आते हीं सर्वप्रथम विश्वविद्यालय द्वारा आंतरिक जांच बनानी चाहिए थी फिर उक्त जांच रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करानी चाहिए थी. विश्वविद्यालय में प्राथमिकी के पश्चात् जाँच समिति गठित किये जाने को लेकर पूरे मामले को पूर्व के घोटालों की तरह रफा-दफा करने का प्रयास बताया जा रहा है. वहीं विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डॉ.टी.के डे ने दर्ज प्राथमिकी में अपना नाम होने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए इसे अत्यंत दुखद बताते हुए कहा कि पूरे मामले में उनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने कहा की विश्वविद्यालय के अनुशासन में पूर्ण मनोयो और ईमानदारी से परीक्षा नियंत्रक के दायित्व का निर्वहन करते हुए हर तरह के जाँच में पूर्ण सहयोग करते हुए उचित स्थान पर साक्ष्य के साथ मौखिक और लिखित रूप में अपना पक्ष रखूंगा. वहीं विश्वविद्यालय सूत्रों का कहना है की पूर्व की भांति इस बार भी दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के प्रशासनिक अधिकारी को वरदहस्त प्रदान कर बचानें वाले पूर्व और कुछ वर्तमान अधिकारियों ने पुनः मामले को रफा-दफा करने हेतु जांच समिति गठित करने की कवायद की है. गौरतलब है की दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के प्रशासनिक अधिकारी पर पूर्व निदेशक सह वर्तमान में लंगट सिंह महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.ओ.पी राय ने तत्कालीन कुलपति से लिखित शिकायत की थी कि बिना उन्हें जानकारी दिए दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के प्रशासनिक अधिकारी द्वारा 2.40 करोड़ रुपये का भुगतान करा लिया गया है। तत्कालीन निदेशक डॉ.राय द्वारा दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के प्रशासनिक पदाधिकारी ललन कुमार पर वित्तीय अनियमितता के साथ राशि गबन के आरोप लगाए गए थे। डा.ओ.पी राय ने कुलपति को दिए आवेदन में कहा था कि बिना उन्हें जानकारी दिए 2.40 करोड़ रुपये का भुगतान करा लिया गया है। इसमें से 56 लाख 24 हजार रुपये ललन कुमार ने स्वयं अपने नाम पर भुगतान करवाया है। वहीं ललन कुमार ने नियुक्ति के समय जिस इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट आफ कंप्यूटर साइंस में निदेशक के पद का अनुभव दिखाया, उसी संस्थान को पाठ्य सामग्री आवंटित करने का जिम्मा दे दिया। इस संस्थान के नाम पर 48 लाख 82 हजार रुपये का भुगतान किया गया। इंटरनेशनल बुक ट्रेडर्स को 76 लाख और विकास पब्लिशिंग हाउस के नाम पर 58 लाख रुपये का भुगतान करा लिया। उन्होंने कहा था की नियमानुसार निदेशक को भुगतान संबंधी जानकारी होनी चाहिए। आश्चर्यजनक रूप से तत्कालीन कुलपति द्वारा शिकायतकर्ता डा.राय को हीं इसके बाद निदेशक पद से हटा दिया। इसके बाद इस मामले में सामाजिक कार्यकर्त्ता अनिल कुमार सिंह ने इसकी शिकायत शिक्षा विभाग से की जिसमें प्रशासनिक पदाधिकारी ललन कुमार पर अनियमितता एवं राशि गबन के आरोप लगाए गए थें। उक्त शिकायत मिलने के बाद सितम्बर 2022 में शिक्षा विभाग में उच्च शिक्षा निदेशक डा. रेखा कुमारी ने बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के कुलसचिव से आरोपों की जांच कर रिपोर्ट उपलब्ध कराने को कहा था। निदेशक ने जारी पत्र में कुलसचिव को आरोप की बिंदुवार जांच करने को कहा था। इसकी रिपोर्ट भी यथाशीघ्र विभाग को उपलब्ध कराने को कहा था, ताकि इस मामले में कोई निर्णय लिया जा सके। किन्तु अज्ञात कारणों से आज तक उक्त शिकायत पर कोई कारवाई नहीं होना और शिकायतकर्ता को हीं पदमुक्त कर दिया जाना उक्त प्रशासनिक पदाधिकारी पर विश्वविद्यालय के अधिकारियों के वरदहस्त और संरक्षण होने का स्पष्ट प्रमाण है. अब देखना है की नवनियुक्त कुलपति के कार्यकाल में उक्त प्रशासनिक पदाधिकारी पर पूर्व और वर्तमान में लगे आरोपों पर क्या कोई कार्रवाई होती है या पूर्व की भांति सब मैनेज हो जायेगा.