Home India महापुरुषों की मृत्यु भी हंसते-हंसते होती है -प्रवर्तक विजय मुनि जी महाराज साहब,

महापुरुषों की मृत्यु भी हंसते-हंसते होती है -प्रवर्तक विजय मुनि जी महाराज साहब,

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महापुरुषों की मृत्यु भी हंसते-हंसते होती है -प्रवर्तक विजय मुनि जी महाराज साहब,

महापुरुषों की मृत्यु भी हंसते-हंसते होती है -प्रवर्तक विजय मुनि जी महाराज साहब,
सुमति प्रकाश म. सा.के निधन पर श्रद्धांजलि गुणानुवाद सभा सम्पन्न,
नीमच इतिहास से सबक लेकर वर्तमान का सदुपयोग करना और भविष्य से आशा रखना चाहिए। जागरूक बनकर जीने वालों का भविष्य कभी नहीं बिगड़ता है। वे तो इच्छा से जन्म लेते हैं। पुण्य के साथ रहते हैं। शांति से मन भरा रखते हैं और उनका मरण भी हंसते-हंसते होता है। यह बात प्रवर्तक विजय मुनि जी महाराज साहब ने कहीं। वे कृषि उपज मंडी रेलवे स्टेशन रोड स्थित जिन कुशल दादावाड़ी में सुमति प्रकाश मुनि की धर्म गुणाणुनुवाद श्रद्धांजलि सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि
हर व्यक्ति को चिंतन करना चाहिए कि जग में वह क्या लेकर आया था ।।उसे कपड़े भी दूसरों ने पहनाए है ।नाम भी दूसरों ने दिया है । बड़ा भी दूसरों ने किया है।उसे खाने कमाने लायक भी तो दुसरों ने बनाया है ।वह कुछ नहीं करता लेकिन यह समझ लेता है कि सब कुछ उसी ने किया है जो उचित नहीं है।ज्ञानी वही होता है जो वर्तमान में जीता है भविष्य हमेशा वर्तमान से बनता है  जीवन में केवल वर्तमान को सुधारने का लक्ष्य होना चाहिए।सुमति प्रकाश मुनि जी महाराज साहब का जैसा नाम वैसा काम था। उनकी सुमति और ज्ञान के प्रकाश से पंजाब नेपाल अनेक लोगों ने प्रेरणा लेकर अपने जीवन में परिवर्तन किया और दीक्षा संयम जीवन को अंगीकार किया था। मृत्यु अचानक आती है इसका कोई समय निश्चित नहीं होता है।सुमति प्रकाश मुनि जी महाराज साहब ने आयम्बिल  प्रार्थना कर तपस्या के क्षेत्र में एक अलग प्रेरणा प्रदान की है। व्यापार का कर्म छोड़ने वाला व्यापारी नहीं कहलाता है। उसी प्रकार धर्म कर्म छोड़ने वाला साधु नहीं कहलाता है।यदि कोई शुद्ध व्यक्ति भी पुण्य कर्म करे तो उसे देवता नमन करते हैं।क्यों कितना जिया यह महत्वपूर्ण नहीं है जीवन में पुण्य कर्म कैसे और कितने की है यह महत्वपूर्ण होता हैजीवन धर्म तपस्या में बिताया हुआ  पल ही महान होता है ।जो झुकता नहीं है वह टूट जाता है जो झुकता है वह सुरक्षित रहता है।सामाजिक एकता के बिना किसी भी समाज का विकास नहीं हो सकता है।संस्कारों की शिक्षा जीवन में उजाला करती है। संतरा जीवन को पवित्र करने वाला महान प्रेरणादाई कदम है। चंद्रेश मुनि महाराज साहब ने कहा कि संसार में रहते हैं तो सहयोग और वियोग दोनों आते हैं सुख-दुख दोनों आते हैं लेकिन जहां राज है वहां द्वेष भी होता है माता-पिता का सहयोग मिलता है तो संतान का जन्म होता है । रिश्तेदारों जितने दूर रहते हैं उतना ही है उनके प्रति हमारा राग होता है।हम संसार से जितने दूर रहेंगे वहां राग आसक्ति कम होगी तो पाप कर्म भी कम होगा और दुख भी कम होगा ।आज संसार में कदम कदम पर दुख है।जीवन के हर कदम पर मृत्यु का साक्षात्कार होता है चाहे इच्छा नहीं हो लेकिन संसार विज्ञान ने कितनी ही प्रगति क्यों नहीं कर लिया फिर भी मृत्यु शाश्वत है। कोई अमर नहीं होता है जन्म के साथ मृत्यु निश्चित है इसीलिए व्यक्ति मनुष्य दुखी है।बच्चा जन्म लेता है तो पराधीन होता है जवानी में आत्मनिर्भर बनता है बुढ़ापे में फिर पराधीन हो जाता है।साध्वी डॉक्टर विजय सुमन श्री जी महाराज साहब ने कहा कि महापुरुषों के बताएं उपदेश पर चले तो जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकते हैं । इस अवसर पर उपस्थित समाज जनों द्वारा   2 मिनट का मन रखकर पांच नवकार मंत्र का उच्चारण किया गया और सुमति प्रकाशमणि के निधन  उपरांत श्रद्धांजलि दी गई। धर्म सभा का संचालन भंवरलाल देशलहरा ने किया।
जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान मे सुबह 10 बजे  स्टेशन रोड स्थित दादावाड़ी में जैन युवा संगठन के संस्थापक पूज्य गुरुदेव सुमति प्रकाश जी महाराज साहब के 27 नवंबर को संथारा सहित देवलोक गमन  उपरांत श्रद्धांजलि गुणानुवाद सभा आयोजित हुई । इस अवसर पर उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा.,  अरिहंतमुनिजी म. सा., ठाणा 4 व अरिहंत आराधिका तपस्विनी श्री विजया श्रीजी म. सा. आदि ठाणा का सानिध्य मिला। इस अवसर पर  सैकड़ों समाज जन बड़ी संख्या में  उपस्थित थे।

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