Home India  मन के विकारों को मिटाए बिना  अंतर्मन के ज्ञान दर्शन नहीं होता है- स्वामी सत्यानंद सरस्वती महाराज

 मन के विकारों को मिटाए बिना  अंतर्मन के ज्ञान दर्शन नहीं होता है- स्वामी सत्यानंद सरस्वती महाराज

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 मन के विकारों को मिटाए बिना  अंतर्मन के ज्ञान दर्शन नहीं होता है- स्वामी सत्यानंद सरस्वती महाराज

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चातुर्मास धर्म सभा प्रवाहित,
नीमच  मन को पवित्र किए बिना अंतर्मन के ज्ञान का दर्शन नहीं होता  है। शरीर को स्वस्थ करने के लिए स्नान करते हैं। आत्मा को पवित्र करने के लिए आत्म निरीक्षण  आवश्यक है । आत्म निरीक्षण का ध्यान मन का स्नान है। ध्यान से आत्मा पवित्र होती है। जिसका मन बीमार है उसका शरीर भी बीमार ही रहेगा। और ऐसी स्थिति में विचार भी विकारों वाले ही आएंगे। और विकारों से विकास नहीं होगा पाप कर्म ही बढेंगे। जीवन में आत्मा  का कल्याण करना है तो पवित्र विचारों को जीवन में आत्मसात करना होगा तभी हमारे जीवन का कल्याण हो सकता है।यह बात स्वामी सत्यानंद सरस्वती महाराज ने कही। वे ग्वालटोली श्री राधा कृष्ण मंदिर में चंद्रवंशी ग्वाला समाज के मार्गदर्शन में कथा श्रीमद् भागवत सेवा समिति के तत्वावधान में आयोजित चातुर्मास धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जीवन में यदि आगे बढ़ना है तो किसी दूसरों के गिरने पर उसका मजाक नहीं बनाये ।उसे संभालने के लिए सहारा प्रदान करें।संसार में आजकल अपने आसपास वालों से अधिक सावधान रहना चाहिए ये कभी भी अपने को हंसी का पात्र बना सकते हैं। यदि मन में क्रोध आता है तो अपमान होने पर यह कर्मों का दोष होता है।नकारात्मक सोच वाला व्यक्ति सदैव दुखी रहता है।घर में यदि एक व्यक्ति की सोच नकारात्मक होती है तो  पूरा परिवार प्रभावित होता है इसलिए नकारात्मक सोच से सदैव बचना चाहिए। परिवार की खुशहाली को आगे बढ़ाना चाहिए।परिवार का एक व्यक्ति रोगी होता है तो पूरा परिवार प्रभावित होता है इसलिए सदैव स्वस्थ रहने के लिए शुद्ध आहार पर ध्यान रखना चाहिए। समुद्र में ज्वार भाटा चंद्रमा की दशा और दिशा पर परिवर्तन होता है। प्रत्येक मनुष्य को सदैव पुण्य कर्म और अच्छे कार्य करना चाहिए नहीं तो पूरा परिवार प्रभावित होता है इस बात के धेयवाक्य को लेकर जीवन में आगे बढ़ना चाहिए। शरीर के एक अंग के खराब होने से पूरा शरीर प्रभावित होता है उसी प्रकार हमारे देश में एक अंग के प्रभावित होने पर पूरे देश का प्रशासन प्रभावित होता है इसलिए हमें सदैव अच्छे कार्य करना चाहिए बुंरे कार्य से बचना चाहिए।यदि मन में तनाव होता है तो पूरा शरीर प्रभावित होता है इसलिए मन को तनावमुक्त रखना चाहिए। शरीर में तनाव चिंता के कारण बढ़ता है। कामवासना मन से आती है शरीर का रोम रोम प्रभावित होता है मानव शरीर एक दूसरे से जुड़े हैं।शराब व्यक्ति का शरीर पीता है लेकिन पागल और बेहोश उसका मन होता है। मनुष्य को क्रोध आता है तो धरती पर नर्क है और शांत रहता है तो धरती पर स्वर्ग है।भक्ति और आनंद के क्षण को बढ़ाना चाहिए। दुख अपने आप कम हो जाएगा। काम क्रोध और लोभ नरक के रास्ते हैं। नारद ऋषि 24 अवतारों में से एक अवतार थे।हम दुख के मार्ग पर चलेंगे तो शांति की मंजिल कैसे प्राप्त करेंगे। ।महाराज श्री ने क्रोध को नियंत्रण करने का एक अद्भुत तरीका बताया उन्होंने कहा कि कागज की एक पर्ची पर पेन से लिख कर रखें कि मुझे क्रोध आ रहा है और जब भी क्रोध आये उस पर्ची को निकालकर पढ़ें आपका क्रोध सदैव नियंत्रण में रहेगा। संसार में मनुष्य अजीब गलती करता है क्रोध कोई और करता है गलती दूसरे की होती है और क्रोध कर खुद को दुख देता है इसलिए क्रोध से सदैव बचना चाहिए दूसरों की गलती पर विनम्रता पूर्वक विचार करना चाहिए क्रोध नहीं करना चाहिए तभी हमारे जीवन से क्रोध दूर हटेगा।क्रोध कर व्यक्ति स्वयं का ज्यादा नुकसान करता है दूसरे का कम होता है इस बात पर सदैव ध्यान रखे तो क्रोध पर नियंत्रण प्राप्त कर सकता है। धर्म सभा में समाज के युवा पत्रकार विष्णु चंद्रवंशी के निधन पर शोक संवेदना व्यक्त करते हुए उनकी सद्गति के लिए सामूहिक प्रार्थना की गई।दिव्य सत्संग चातुर्मास धर्म सभा महाआरती में
पूर्व कृषि उपज मंडी अध्यक्ष उमराव सिंह गुर्जर, ग्वाला समाज के धन्नालाल पटेल,श्यामलाल चौधरी,सत्संग समारोह के मुख्य संकल्प कर्ता पप्पू हलवाई,श्री मदभागवत उत्सव समिति के गोपाल हलवाई,अशोक सुराह,सुनील मंगवानी,अभय जैन,विनोद ग्वाला,गुड्डा हलवाई सहित अनेक गणमान्य,धर्म प्रेमी जन उपस्थित थे। सभा का संचालन समिति सदस्य हरगोविंद दीवान ने किया।महा आरती के बाद प्रसाद वितरण किया गया।

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