Home India पूर्वोत्तर में ऑयल पाम वृक्षारोपण के विशाल अभियान के लिए एकजुट हुए उद्योग विशेषज्ञ

पूर्वोत्तर में ऑयल पाम वृक्षारोपण के विशाल अभियान के लिए एकजुट हुए उद्योग विशेषज्ञ

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पूर्वोत्तर में ऑयल पाम वृक्षारोपण के विशाल अभियान के लिए एकजुट हुए उद्योग विशेषज्ञ

~एनएमईओ-ओपी, सही दिशा में उठाया गया कदमपूर्वोत्तर की विशेष ज़रूरतों का ध्यान रखेगा

ऑयल पाम किसानों के लिए आय का एक वैकल्पिक स्रोत प्रदान करेगा और पर्यावरण के पारिस्थितिकीय संतुलन को भी बनाए रखेगा

सीपीओ उत्पादन में वृद्धि से देश का आयात व्यय कम होगा

ऑयल पाम के वृक्षारोपण के लिए भूमि आवंटन में तेज़ी लाने की ज़रुरत

मुंबई, भारत सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन -ऑयल पाम (एनएमईओ-ओपी) के तहत 25 जुलाई से 5 अगस्त2023 तक ऑयल पाम वृक्षारोपण का विशाल अभियान शुरू किया है। इस पहल के संबंध में, गुवाहाटी में एक गोलमेज़ सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेडइंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑयल पाम रिसर्चसॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और सॉलिडेरिडाड नेटवर्क ने भाग लिया। इस सम्मलेन में पूर्वोत्तर के लिए ऑयल पाम की खेती के महत्व और इस क्षेत्र के किसानों का उत्थान में योगदान के बारे में चर्चा हुई।

अगस्त 2021 मेंभारत सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन -ऑयल पाम (एनएमईओ-ओपी) लॉन्च किया था। ऑयल पाम से खाद्य तेल उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देने से जुड़ा यह मिशनएनएमईओ-ओपीएक केंद्रीय योजना है और इसके तहत लागत का वहन केंद्र और राज्य मिलकर करेंगे। सामान्य राज्यों के लिए केंद्र और राज्य सरकार के बीच 60:40 और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 90:10 और केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्रीय एजेंसियों के लिए 100% लागत का वहन किया जाएगा। इस पूरी व्यवस्था में, भूमि का स्वामित्व किसान के पास ही रहेगान कि किसी कॉरपोरेट काजिसे ऑयल पाम की खेती के लिए क्षेत्र का आवंटन किया गया है।

देश के अग्रणीविविधीकृतअनुसंधान और विकास केंद्रित खाद्य और कृषि-व्यवसाय समूह, गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक,  बलराम सिंह यादव ने कहा, एनएमईओ-ओपी देश के लिए सही दिशा में उठाया गया कदम है। हम इसे लागू करने और पूर्वोत्तर राज्यों का विशेष ध्यान रखने के लिए सरकार को धन्यवाद देते हैं। यह कंपनी 2006 से इस क्षेत्र में ऑयल पाम वृक्षारोपण कर रही है। यह एक मात्र कंपनी है जो 2014 से मिजोरम में एक मिल का परिचालन कर रही है। कंपनी ने एनएमईओ-ओपी योजना के तहत इस क्षेत्र में ऑयल पाम की खेती के विकास और प्रचार के लिए असममणिपुरअरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा राज्य की सरकारों के साथ समझौते पर भी हस्ताक्षर किए हैं।

उन्होंने कहा, “ऑयल पाम व्यवसाय में तीन दशक से अधिक की हमारी विशेषज्ञता सेहमें किसानों को स्थायी ऑयल पाम वृक्षारोपण प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी प्रदान करने के अलावाविभिन्न प्रकार के संसाधन प्रदान करने में मदद मिली है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में हमारी सफलताइसका प्रमाण है। उन्होंने कहाइस क्षेत्र की अनूठी स्थलाकृति (टोपोग्राफी) हमारे लिए बड़ी चुनौती हैलेकिन हमें भरोसा है कि हम अपनी क्षमता के मद्देनज़रअसम और अरुणाचल प्रदेश में अपनी सफलता दोहरा सकेंगे। इससे न केवल कम जोत वाले किसानों का उत्थान होगा, बल्कि इस क्षेत्र में रोज़गार भी पैदा होगा।

भारतवैश्विक स्तर परपाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक और इसका दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। देश मेंफिलहालमात्र 3,00,000 टन का उत्पादन होता होता है, जबकि आयात 7,500,000 टन का होता है।

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी. वी. मेहता ने खाना पकाने के किफायती तेल और लाखों उपभोक्ताओं के लिए पोषण के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में पाम ऑयल की महत्वपूर्ण भूमिका पर रोशनी डाली। इसके उल्लेखनीय महत्व के बावजूदहमारे देश को मांग और आपूर्ति के बीच काफी अंतर का सामना करना पड़ता हैजिसकी वजह से करीब 140 लाख टन विभिन्न खाद्य तेलों का वार्षिक आयात होता है। पाम और अन्य तेलों पर होने वाला यह आयात व्यय (आयात बिल), आश्चर्यजनक रूप से 1,20,000 करोड़ रुपये है।

 

डॉ. बी. वी. मेहता ने कहा, इस चुनौती से निपटने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस उपाय करना अनिवार्य है। खाद्य तिलहनों का उत्पादन बढ़ाने और देश के भीतर विभिन्न किस्म के तेल, अपेक्षकृतआसानी से उपलब्ध कराने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ऐसा ऑयल पाम क्षेत्रों की क्षमता का पूरी तरह दोहन करनए क्षेत्रों में तेजी से विस्तार सुनिश्चित कर और क्रूड पाम ऑयल (सीपीओ) का उत्पादन बढ़ाकर किया जा सकता है। इस तरहहम न केवल खाद्य तेल के आयात के बोझ को कम कर सकेंगे, बल्कि विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव को भी कम कर पाएंगे

देश भर मेंऑयल पाम अनुसंधान की ज़रूरतों को पूरा करने के लिएभारतीय ऑयल पाम अनुसंधान संस्थान (आईआईओपीआरएक नोडल इकाई के रूप में काम करता है। ऑयल पाम के संरक्षणसुधारउत्पादनसुरक्षाकटाई के बाद काम आने वाली तकनीक और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के सभी पहलुओं पर अनुसंधान के संचालन और समन्वय के लिए एक केंद्र के रूप में कार्य करते हुएइसने देश भर में गैर-कृषि भूमि के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आईसीएआर-आईआईओपीआर के निदेशक डॉ. के. सुरेश ने कहा, जब आईसीएआर-आईआईओपीआर और डीए एंड एफडब्ल्यू ने 2020 के दौरान ऑयल पाम की खेती सी जुड़े संभावित क्षेत्रों का आकलन कियातो भारत में कुल 27.99 लाख हेक्टेयर भूमि पाम ऑयल की खेती के लिए उपयुक्त पाई गईजिसमें से 9.62 लाख हेक्टेयर इलाके की पहचान पूर्वोत्तर राज्यों में की गई है। फिलहालएनईआर में इसकी खेती 38,992 हेक्टेयर के दायरे में की जा रही हैजिसके विस्तार की काफी गुंजाइश है। आईसीएआर-आईआईओपीआर विभिन्न क्षमता निर्माण कार्यक्रमबीज उद्यानरोपण सामग्रीप्रदर्शनमहत्वपूर्ण सुझाव-आवश्यक सामग्री की आपूर्ति आदि के ज़रिये एनईआर में ऑयल पाम के विकास में मदद कर रहा है।

पाम ऑयलदुनिया की सबसे अधिक उपज देने वालीतेल संबंधी फसल है। इसका उत्पादनप्रति हेक्टेयर 5-10 गुना अधिक हैजो अन्य वनस्पति तेलों के मुकाबले बेहतर भूमि-उपयोग दक्षता प्रदान करता है। इसके आलावाऑयल पाम वृक्षारोपण उद्योग कार्बन फुटप्रिंट कम होता है।

भारत में ऑयल पाम की खेती की वहनीयता (सस्टेनेबिलिटी) के बारे मेंसॉलिडेरिडाड नेटवर्क के वनस्पति तेल कार्यक्रम प्रमुख- भारतडॉ. सुरेश मोटवानी ने कहा, “अध्ययनों से पता चला है कि पाम ऑयल सबसे पर्यावरण की दृष्टि से सबसे अधिक वहनीय फसलों में से एक है। वहनीय तरीकों को अपनाकरऑयल पाम वृक्षरोपणपर्यावरणीय और सामाजिक ज़िम्मेदारी के साथ पाम ऑयल उत्पादन की मांग को संतुलित कर सकते हैंअपने समग्र पारिस्थितिकीय फुटप्रिंट को कम कर सकते हैं और किसानों के लिए अपेक्षाकृत अधिक वहनीय भविष्य प्रदान करने में योगदान कर सकते हैं। भारत में पाम ऑयल का उत्पादन बढ़ाने के लिए पाम ऑयल उद्योग में सकारात्मक बदलाव लाने और अधिक वहनीय तरीकों में योगदान करनेपर्यावरणस्थानीय समुदायों और भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचाने के लिए इंडियन पाम ऑयल सस्टेनेबिलिटी फ्रेमवर्क (आईपीओएस) पेश किया गया है। ”

समिति ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस क्षेत्र में राज्य सरकारों को आवश्यक बुनियादी ढांचे की स्थापना की प्रक्रिया में तेज़ी लाने और ऑयल पाम की खेती के लिए भूमि आवंटन में तेज़ी लाना चाहिएताकि छोटी जोत वाले किसानों का उत्थान हो और वे समृद्धि हो सकें।

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