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जल, जंगल, जमीन को बचाने में आदिवासियों का महत्वपूर्ण योगदान – जयवीर सिंह

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जल, जंगल, जमीन को बचाने में आदिवासियों का महत्वपूर्ण योगदान – जयवीर सिंह
जनजातीय गौरव दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया जायेगा
– उत्तर प्रदेश में 14 से 15 लाख आदिवासी परिवार रहते हैं – असीम अरुण
लखनऊ:
जनजाति लोकनायक बिरसा मुण्डा के 148वें जयन्ती के अवसर पर बुधवार 15 नवम्बर को गोमती नगर स्थित उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के परिसर में सात दिवसीय “जनजातीय भागीदारी उत्सव” शुरू हुआ। इसका उद्घाटन करते हुए उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि जनजातीय गौरव दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप देने का प्रयास किया जायेगा। इससे भारत की आदिवासी संस्कृति का वैश्विक स्तर पर आदान-प्रदान संभव हो सकेगा। उन्होंने कहा कि भगवान बिरसा मुण्डा के जीवन से प्रेरणा लेते हुए “जल, जंगल, जमीन” को बचाने के लिए उनके द्वारा किये गये प्रयासों को भावी पीढ़ी तक पहुचाने की आवश्यकता है।
पर्यटन मंत्री ने कहा कि लोकनायक बिरसा मुण्डा ने अग्रेजों के खिलाफ संघर्ष कर आदिवासियों में राष्ट्रीय चेतना का संचार किया था। आदिवासी समाज ने हमेशा से जल, जंगल और जमीन को बचाते हुए देश की एकता, अखण्डता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने बताया कि जनजातीय संस्कृति को लखनऊ तथा आस-पास के जनपदों तक पहुंचाने के लिए राज्य सरकार ने इस गौरव दिवस का आयोजन कराया है। उत्तर प्रदेश में लगभग 15 जनजातियां निवास करती हैं। इसमें थारू जनजाति की संख्या सबसे ज्यादा हैं। थारू सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं जनसमुदाय को परिचित कराने के लिए जनपद बलरामपुर के इमिलिया कोडर में जनजाति संग्रहालय का निर्माण कराया गया है। उन्होंने कहा कि एक सप्ताह तक चलने वाले इस कार्यक्रम में 17 राज्यों की जनजातियां भाग ले रही हैं। इस दौरान उनके विभिन्न उत्पादों को प्रदर्शित किया जा रहा है। आदिवासियों के खान-पान, वेशभूषा, परिधान, खेलकूद, गीत नृत्य संगीत का भी प्रदर्शन होगा।
इस अवसर पर अपने सम्बोधन में समाज कल्याण राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार असीम अरुण ने कहा कि उत्तर प्रदेश में 14 से 15 लाख आदिवासी परिवार रहते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भगवान बिरसा मुण्डा को सम्मान दिया है। इसके साथ ही आदिवासी समाज का गौरव भी बढ़ाया है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू। उन्होंने बताया कि इस उत्सव में आदिवासी समाज के स्वास्थ्य, उद्यमिता, उद्योग धंधों और भविष्य में उन्हें विकास की मुख्यधारा से जोड़ने से जुड़े मुद्दों पर चर्चाएं भी होंगी। उन्होंने मंच के सामने दीपा, शुभ, राजा, शिवम् द्वारा तैयार की गई लोकनायक बिरसा मुण्डा की सतरंगी रंगोली की भी प्रशंसा की। दोनों मंत्रियों ने कार्यक्रम का शुभारम्भ नगाड़ा बजाकर किया और भगवान बिरसा मुण्डा की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।
समाज कल्याण के प्रमुख सचिव डॉ.हरिओम ने कहा कि उत्तर प्रदेश के 19 जनपदों में 15 जनजातियां निवास करती हैं। उनके चौमुखी विकास के लिए प्रयास किया जा रहा है। पिछले साल सोनभद्र में एक भव्य आयोजन किया गया था जिसमें 10 हजार जनजाति के लोग शामिल हुए थे। उन्होंने बताया कि इस उत्सव में 17 राज्यों के लगभग 325 कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे।
डॉ.अलका निवेदन के संचालन में हुए इस समारोह के उद्घाटन सत्र में प्रमुख सचिव संस्कृति एवं पर्यटन, संस्कृति एवं धर्मार्थ कार्य मुकेश मेश्राम ने कहा कि उत्तर प्रदेश के 23 जनपदों में भी यह जनजाति गौरव दिवस मनाया जा रहा है। इससे प्रदेश की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि मजबूत होती जा रही है। इस अवसर पर लोक एवं जनजाति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी, उप निदेशक डॉ. प्रियंका सहित कार्यक्रम से जुड़े विभिन्न विभागों के अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित रहे।
“जनजाति भागीदारी उत्सव”में सुबह के सत्र में अकादमी परिसर में उत्तर प्रदेश का कर्मा नृत्य, सहरिया नृत्य, झूमरा नृत्य, कोल्हाई नृत्य, नागालैण्ड का नजान्ता नृत्य, छत्तीसगढ़ का गौर माड़िया नृत्य, उत्तराखण्ड का झीझी नृत्य, जम्मू और कश्मीर का गोजरी नृत्य, उड़ीसा का दलखाई नृत्य, राजस्थान का गरासिया नृत्य, मध्य प्रदेश का गदली नृत्य, पश्चिम बंगाल का कोरा नृत्य, बिहार का संथाल नृत्य, असम का राभा नृत्य, मध्य प्रदेश गुदम्ब बाजा नृत्य, राजस्थान कालबेलिया नृत्य और गुजरात का मेवासी देखने को मिला। दूसरी ओर बहुरुपिया एवं नट, भपंग वादन, भोपा भोपी, बीन वादन भी सुनने को मिला तो आगंतुक देश की उन्नत संस्कृति देख कर रोमांचित हो उठे। इससे पहले जनजाति सांस्कृतिक यात्रा का आयोजन दोपहर को 1090 चौराहे पर किया गया। कार्यक्रम को विविधता प्रदान करते हुए संगोष्ठी और खेलकूद के कार्यक्रम भी उत्सव में शामिल किये गए हैं।
शिल्प मेला में उत्तर प्रदेश का मूँज शिल्प, जलकुंभी से बने शिल्प उत्पाद, कशीदाकारी, बनारसी साडी, कोटा साडी, सहरिया जनजाति उत्पाद, गौरा पत्थर शिल्प, लकड़ी के खिलौने विक्रय के लिए प्रदर्शित किये जा रहे हैं। इस क्रम में मध्य प्रदेश की माहेश्वरी साड़ी, चन्देरी साही, बाँस शिल्प, जनजातीय बीड ज्वैलरी, पश्चिम बंगाल की काथा साड़ी, ड्राई फ्लावर, धान ज्वेलरी, झारखण्ड की सिल्क साड़ी, हैण्डलूम टेक्सटाइल्स, तेलांगना की पोचमपल्ली, साड़ी और चादर, महाराष्ट्र की कोसा सिल्क साड़ी, राजस्थान का सांगानेरी ऍण्ड ब्लाक प्रिंट, छत्तीसगढ का लौह शिल्प, ढोकरा एवं बाँस शिल्प, असम का हैण्डलूम गारमेंट और सिक्किम का हैण्डलूम टेक्सटाइल्स भी शामिल किया गया है।
व्यंजन मेला में उत्तर प्रदेश का भुनी आलू चटनी, कुमायूँनी खाना, मक्खन मलाई, रबड़ी दूध, चाट का स्वाद चखने का अवसर मिलेगा वहीं राजस्थान के व्यंजन, मुंगौड़ी, जलेबी, तंदूरी चाय, जनजातीय व्यंजन, महाराष्ट्र के व्यंजन, मटका रोटी, बिहार के व्यंजन, खाजा, मनेर के लड्डू भी इस आयोजन का स्वाद बढ़ा रहा है।
नागालैण्ड का नजान्ता नृत्य, छत्तीसगढ़ का गौर माड़िया नृत्य, उत्तर प्रदेश का कर्मा नृत्य, सहरिया नृत्य, झूमरा नृत्य, कोल्हाई नृत्य, राजस्थान का गरासिया नृत्य, कालबेलिया नृत्य, मध्य प्रदेश का गदली नृत्य, गुदम्ब बाजा नृत्य, पश्चिम बंगाल का कोरा नृत्य, बिहार का संथाल नृत्य, उत्तराखंड का झीझी नृत्य, जम्मू कश्मीर का गौजरी नृत्य, उड़ीसा का दलखाई नृत्य, असम का राभा नृत्य, कर्नाटक का लम्बाड़ी नृत्य, गुजरात का मेवाती

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