एक कहावत है नादां की दोस्ती जी का जंजाल। नीमच की जनता ने भी कुछ ऐसे ही लोगों को चुनकर भेज दिया है जिनका कोई विजन नहीं है, दूरदर्षी सोच नहीं है। हर्कियाखाल में अवैध खेती का मामला कई दिनों से सूर्खियों में बना हुआ है। वहां अवैध खेती होती है और नीमच को पेयजल उपलब्ध कराने वाले जाजू सागर बांध के पानी की चोरी होती है। यह पिछले कई वर्षों से हो रहा है। वहां तैनात कर्मचारी भी कभी इसे रोक नहीं पाए, क्योंकि कुछ तो उनकी बंदी थी और बाकी अवैध खेती करने वालों को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होता रहा है। पिछले दिनों हमारी नगरपालिका अध्यक्ष ने बांध के पानी की निगरानी के लिये पांच पार्षदों की निगरानी समिति बनाई। समिति बनाने के बाद बांध का पानी और निर्बाध गति से चोरी होने लगा, क्योंकि जब सईंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का। नगरपालिका अध्यक्ष और उनके सलाहकारों को एक नया आईडिया सूझा कि हम अवैध खेती तो रोक नहीं पा रहे हैं तो क्यों नहीं इसे वैध कर दें। इसमें नगरपालिका को चार पैसे भी मिल जाएंगे। अगर वो अपना दिमाग थोडा आगे दौडा लेते कि जो लोग अवैध खेती में पानी चोरी से बाज नहीं आ रहे, वे वहां खेती में तो अधिकारपूर्वक पानी की चोरी करेंगे। इसका जनता ने विरोध किया। फिर एक नया आईडिया आया कि बांध के चोरी वाले हिस्से में चार फीट चौडी और चार फीट गहरी खाई खोद दें तो चोरी करने वालों के पाईप नजर आ जाएंगे। वो ये आईडिया अमल में लाते उसके पहले अवैध खेती वाले सीएमओ और तहसीलदार के पास पहुंच गए। ये और चार कदम आगे निकले। ठीक है इस बार यह अवैध खेती तुम कर लो अगली बार मत करना। यह तो ऐसी मिसाल हो गई कि थानेदार ने चोर को पकड लिया, चोर ने कहा कि साहब बडी मुष्किल से यह माल हाथ आया है, अगर यह चला गया तो मेरा बहुत नुकसान हो जाएगा, तो थानेदार साहब ने कहा ठीक है ले जा, परन्तु आईन्दा चोरी मत करना।
नेताओं से तो कोई उम्मीद करना बेकार है, परन्तु जब अधिकारी ऐसा बेतुका फैसला लेने लगते हैं तो लगता है सारे कुएं में भांग पडी हुई है। ठीकरिया बांध भी कोई बहुत ज्यादा मददगार साबित नहीं होगा।
ऐसा ही पेयजल संकट जब नीता दुआ नीमच नगरपालिका की अध्यक्ष थीं, तब आया था। उस समय नयागांव की खदानों से टैंकरों से पानी लाया गया था और उस समय चर्चित टैंकर घोटाला हुआ था, जिसमें लाखों रूपए का हेर-फेर सामने आया था। जिसका प्रकरण अभी भी न्यायालय में लम्बित है।
नीमच की प्रतिष्ठित संस्था कृति विगत पन्द्रह वर्षों से चम्बल का पानी नीमच लाने की बात करती चली आई है। इसके लिए धरने, आन्दोलन, ज्ञापन, विधायक, सांसद से लगाकर मुख्यमंत्री तक योजना की रूपरेखा बनाकर दी। हजारों पोस्टकार्ड नीमच की जनता से लिखवाकर डलवाए, परन्तु हमारे भूमिपूजक जनप्रतिनिधि नारियल फोडकर प्रसाद खा लेते हैं तो समझते हैं कि सब काम हो गया।
हमारे बाद आवाज उठाने वाले भीलवाडा, मंदसौर को चम्बल का पानी मिल गया, परन्तु नीमच षहर को योजना तक में षामिल नहीं किया गया। इस वर्ष कम वर्षा के कारण नीमच के पेयजल स्त्रोत में पानी नहीं है। नीमच के दोनों ओर बहने वाले नालों की सफाई, जलकुंभी की निकासी, गहरीकरण, मोटरबोट, पिकनिक स्पॉट और भी न जाने कितनी हवाई बातें सुनते तो आए हैं, पर हुआ कुछ नहीं।
नगरपालिका अभी से दो दिन, तीन दिन छोडकर पानी देने की भूमिका बना रही है, पेयजल सप्लाई के समय में तो कटौती षुरू भी हो गई है।
अब क्या कर सकते हैं ? कुदरत मेहरबान हो जाए और हर्कियाखाल भर जाए तो राहत मिल सकती है वरना आप, हम सबको इस साल जल संकट के दौर से गुजरना ही है।
आपने मजाक बना रखा है, लोग पानी को तरसेंगे – किशोर जेवरिया
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