Uttar Pradesh

dussehra 2021: कानपुरः विजयादशमी पर खुलते हैं दशानन मंदिर के कपाट, स्नान-शृंगार कर रावण की विधि-विधान से होती है आरती – devotees worships ravan in dashanan mandir of kanpur on dussehra

सुमित शर्मा, कानपुर
उत्तर प्रदेश के कानपुर में दशानन का इकलौता मंदिर है। दशानन मंदिर के कपाट साल में एक बार विजयादशमी के दिन खोले जाते हैं। रावण प्रकांड ज्ञानी था, उसके जैसा ज्ञानी इस पूरे ब्रह्मांड में दूसरा नहीं था। दशानन रावण भगवान शंकर के चरणों में कमल के फूलों की तरह सिर चढ़ाता था। विद्वानों का मानना है कि जिस दिन रावण का जन्म हुआ था, उसी दिन उसका वध भी हुआ था। ऐसे में इस दिन मंदिर के कपाट खोलकर रावण का जन्मोत्सव मनाया जाता है।

विजयादशमी के दिन दशानन मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। रावण की प्रतिमा को दूध और पानी से नहलाया जाता है। दशानन का श्रृंगार किया जाता है और पूरे मंदिर को फूलों से सजाया जाता है। दशानन की पूरे विधि-विधान से आरती की जाती है।

इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं और पूजा-पाठ करते है। श्रद्धालु सरसों के तेल के दीपक जलाते है। विद्धानों का मानना है कि रावण प्रकांड ज्ञानी था, दशानन चारों वेदों का ज्ञाता था। उसके दर्शन मात्र से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, बुद्धि और विवेक का विकास होता है।

मंदिर का इतिहास

उन्नाव में रहने गुरूप्रसाद शुक्ल भगवान शंकर के बहुत बड़े भक्त थे। गुरूप्रसाद शुक्ल प्रतिदिन उन्नाव से शिवाला मंदिर दर्शन के लिए आते थे। गुरूप्रसाद का मानना था कि शिवाला भगवान शिव का पावन स्थान है, ऐसे में यह स्थान भगवान शिव के सबसे बडे़ भक्त के बिना अधूरा है। दशानन जैसी भगवान शिव की अराधना कोई नहीं कर सकता है। गुरूप्रसाद शुक्ल ने 1868 में दशानन मंदिर का निर्माण कराया था।

जन्म और मृत्यु से जुड़ा इतिहास

पुजारी चंदन ने बताया कि प्रकांड पंडित रावण का जन्म चैत्र शुक्ल दशमी को हुआ था और उसकी मृत्यु भी चैत्र शुक्ल दशमी को हुई थी । विजयादशमी की सुबह दशानन मंदिर के पट खोलकर जन्मोत्सव मनाते है। इसके साथ ही सूर्यास्त की अंतिम किरण के साथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।

उन्होंने बताया कि रावण कैलाश पर्वत उठा सकता था, लेकिन सीता स्वंयवर में धनुष नहीं उठाया था। रावण त्रिकालदर्शी था, उसे पता था कि प्रभु राम ने सीता को अग्नि में प्रवेश करा दिया है। रावण ने सीता को अशोक वाटिका में रखा था, जहां शोक दूर होते है। सीता की रक्षा की जिम्मेदारी त्रिजटा को सौंपी थी, त्रिजटा खुद चारों पहर राम नाम का जाप करती थी। रावण ने राक्षस जाति को प्रभु राम के हाथों मोक्ष दिलाने का काम किया था। बल्कि प्रभु राम ने रावण का खुद क्रियाकर्म किया था।


Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button