डिंपल को राज्यसभा भेजने की चर्चा पर लगा विराम
बुधवार को कांग्रेस नेता रहे कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) के सपा समर्थन से राज्यसभा के लिए दावेदारी पेश कर दी है। वहीं, जावेद अली खान के सपा के टिकट पर राज्यसभा के लिये पर्चा दालिख कर दिया है। तीसरा नाम डिंपल यादव का जोरों से चल रहा था, लेकिन एक रात में आखिर ऐसा क्या हुआ कि अगली सुबह रालोद मुखिया जयंत चौधरी को राज्यसभा का संयुक्त उम्मीदवार बना दिया गया।
विधानसभा चुनाव में रालोद का नहीं दिखा था असर
यूपी विधानसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी में जयंत चौधरी भले ही सपा गठबंधन के साथ चुनाव लड़कर कोई चौंकाने वाले नतीजे न दिखा पाएं हों, लेकिन किसान आंदोलन के बाद से राष्ट्रीय लोकदल पहले से मजबूत हुई है। इसी के बदौलत पंचायत चुनाव में रालोद ने अपनी ताकत का इजहार भी किया था और यही एक वजह भी थी कि दिल्ली में यूपी चुनाव के वक्त गृहमंत्री अमित शाह ने जाट नेताओं के साथ बैठक की थी। ये बैठक बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा के आवास पर बुलाई गई थी। उस बैठक के बाद बीजेपी सांसद ने जयंत चौधरी को लेकर एक बड़ा बयान दिया था।
बीजेपी के दरवाजे खुले- बीजेपी सांसद
उस वक्त बैठक में आरएलडी के सपा के साथ गठबंधन पर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि जयंत चौधरी गलत घर में चले गए हैं। वहीं, इसके बाद प्रवेश वर्मा ने बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी को बीजेपी गठबंधन में आने का प्रस्ताव दिया और कहा कि बीजेपी के दरवाजे उनके लिए खुले हैं।
बीजेपी सांसद ने दिया था ऑफर
बीजेपी सांसद ने अपने बयान में कहा था कि यह बात तय है कि चुनाव बाद बीजेपी की सरकार बनेगी, लेकिन जयंत पर उन्होंने कहा कि एक अलग रास्ता चुना है। जाट समाज के लोग उनसे बात करेंगे, उन्हें समझाएंगे। वहीं बीजेपी सांसद ने ये भी कहा था कि चुनाव के बाद भी संभवनाएं हमेशा खुली रहती हैं, हमारा दरवाजा उनके लिए खुला है। वहीं, जयंत चौधरी ने बीजेपी के इस प्रस्ताव को उस वक्त ठुकरा दिया था, क्योंकि जयंत अखिलेश यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन अब स्थितियां बदल सकती थीं। जानकारों की मानें तो अगर जयंत को राज्यसभा न भेजने की सपा गलती करती तो रालोद मुखिया कोई बड़ा सियासी कदम उठाने में देर नहीं करते, जिसके बाद बदलते समीकरणों की वजह से 2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को नुकसान और भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंच सकता था।
पश्चिमी यूपी में जयंत का असर
उत्तर प्रदेश में हुए 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए समाजवादी पार्टी ने रालोद और सुभासपा समेत कई दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। जिसकी शुरुआत अखिलेश-जयंत ने पहले चरण से ही पश्चिमी यूपी से की। रथ यात्रा पर दोनों नेता एक साथ दिखे, जिसमें बड़ी संख्या में भीड़ भी नजर आई, लेकिन आखिर में सड़कों पर उमड़ी भीड़ वोट में तब्दील नहीं हुई। जिसकी वजह से सपा गठबंधन को मात्र 125 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा।
सहयोगी दलों को नाराज न करने का प्रयास
मिल रही जानकारी के मुताबिक, चुनाव के समय सीट शेयरिंग के वक्त अखिलेश यादव ने रालोद मुखिया जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का वादा किया था, जो उस समय काफी चर्चा में भी रहा था, लेकिन नतीजे आने के बाद जैसे-जैसे दिन बीतते गए, वैसे-वैसे इस तरह की तमाम चर्चाएं ठंडे बस्ते में चली गईं। वहीं, सपा विधायक आजम खान, प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव की नाराजगी की खबरों और ओपी राजभर की बयानबाजी के बाद मौजूदा हालातों को देखते हुए सपा मुखिया अखिलेश यादव कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते थे। यही वजह है कि एक रात में सपा मुखिया ने सभी चर्चाओं पर विराम लगाते हुए सहयोगी दल के साथी जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का निर्णय लिया।