Home India  धर्म संस्कार पचपन में नहीं बचपन में सिखाना चाहिए -आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी  

 धर्म संस्कार पचपन में नहीं बचपन में सिखाना चाहिए -आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी  

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 धर्म संस्कार पचपन में नहीं बचपन में सिखाना चाहिए -आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी  

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चातुर्मासिक मंगल   सभा प्रवाहित,
नीमच  धर्म संस्कार के माध्यम से जीवन के सभी कार्य सरलता से सफल हो सकते हैं। अर्थ  को दान में और काम को वात्सल्य में बदल दो तो मोक्ष पुरुषार्थ साधना सरल हो जाएगी ।धर्म क्षेत्र में बैठकर कर्मों की निर्जरा की जा सकती है। पाप का फल कम किया जा सकता है ।धर्म संस्कार 55 वर्ष की आयु में नहीं बचपन में ही सिखाना चाहिए। बेटा बेटी यदि अन्य धर्म में प्रेम विवाह करने के लिए मरने की धमकी देते हैं तो यह है बेटे बेटी का दोष नहीं यह माता-पिता द्वारा बचपन से ही धार्मिक संस्कारों के प्रति अनुशासन नहीं रखने के कारण यह परिणाम आता है इसलिए बच्चों को बचपन से ही धार्मिक संस्कारों से जुड़े रखना चाहिए।धार्मिक प्रवचन में आने वाला बच्चा कभी भी अन्य धर्म में प्रेम विवाह का प्रयास तो दूर विचार भी नहीं करेगा यह बात चातुर्मास के लिए विराजित बंधु बेलडी पूज्य पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागर जी मसा के शिष्य रत्न नूतन  आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागर जी महाराज ने कही। वेश्री जैन श्वेतांबर भीड़ भंजन पार्शवनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में मिडिल स्कूल मैदान के समीप जैन भवन पर आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि बच्चे के लिए मां द्वारा दिया गया एक धार्मिक संस्कार 100 शिक्षकों के ज्ञान के समान होता है। क्योंकि बचपन में सीखा हुआ संस्कार बच्चा कभी नहीं भूलता है।55 वर्ष की उम्र में तो गृहस्थी से उदासीनता आना चाहिए ।सरकार ने सेवा कार्य मुक्त होने के लिए 60 वर्ष की आयु निर्धारित की है परंतु ग्रृहस्थ ने अपनी ग्रहस्थी के कार्य मुक्त होने की कोई तिथि या आयु निर्धारित नहीं की है। वस्तुओं की एक्सपायरी तिथि होती है परंतु मनुष्य के इंद्रिय विषयों  की तिथि निश्चित नहीं । आयु के प्रारंभ से लेकर अंत तक इंद्रिय विषयों को भोगता रहता है ।धर्म के द्वारा इंद्रियां और मन पर नियंत्रण कर जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है। एक प्रश्न के उत्तर में महाराज श्री ने बताया कि यदि जीवन में जीव हत्या के पाप से बचना है तो पानी को सदैव कपड़े से छानकर ही पीना चाहिए। जीव हिंसा रुकेगी और हमारी आत्मा का कल्याण हो सकेगा। एक श्रद्धालु भक्त के प्रश्न के उत्तर में महाराज श्री ने बताया कि विवाह मांगलिक कार्यक्रमों में 10 से 12 प्रकार के भोजन सामग्री का ही निर्माण करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो गरीब वर्ग के घर में जब मांगलिक विवाह का कार्यक्रम होगा तो वह मजबूरी में समाज की परंपरा का निर्वहन करने के लिए कर्ज लेकर अधिक भोजन सामग्री का निर्माण करेगा जो कि धर्म अध्यात्म की दृष्टि से अनुचित है। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में बताया कि परिवार में  बच्चे के जन्म पर सभी परिवार जन 27 दिन तक मंदिर में पूजा अर्चना नहीं करें लेकिन वह 27 दिन बाद मंदिर में प्रवेश द्वार के बाहर से प्रतिमा के दर्शन तो कर सकते हैं। संसार में रहते हुए यदि मनुष्य के मन में संसार से हटने की भावना प्रबल हो तो पाप से भी मुक्ति मिल सकती है और संयम जीवन का पालन हो सकता है। छोटे दोष बड़े लगने लगे अपने दोष बड़े लगने लगे सामने वाले के गुण छोटे लगने लगे तो हमारे अंदर धर्म आ गया है। बुराई में भी अच्छाई देखना चाहिए सभी परिस्थिति में समान भाव से रहना ही सामायिकता का लक्षण होता है। चाणक्य के जन्म के समय उसके मुंह में दो दांत थे तब उनके पिता ने ज्योतिष से पूछा कि उनका बेटा बड़ा होकर क्या करेगा तब ज्योतिष ने कहा कि वह राजा बनेगा। पिता ने सोचा कि यदि राजा बनेगा तो पाप कर्म भी भूल वस होंगे ही। उनके पिता ने दृढ़ निश्चय कर दोनों दांत निकालकर तोड़ दिए।उनके पिता ने ज्योतिषाचार्य से पूछा कि अब उनका बच्चा क्या बनेगा तब ज्योतिष आचार्य ने कहा कि अब उनका बच्चा ऐसा बुद्धिमान व्यक्ति बनेगा कि राजा भी उनसे पूछ कर पानी पिएगा। श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी  ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी  चातुर्मासिक सानिध्य मिला।पूज्य आचार्य भगवंत का आचार्य पदवी के बाद प्रथम चातुर्मास नीमच में हो  रहा है। आयम्बिल उपवास, एकासना, बियासना, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा में जावद ,जीरन, मनासा, नयागांव, जमुनिया,जावी, आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त  सहभागी बने।
धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।

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