
बसपा सुप्रीमो मायावती का 65 वां जन्मदिन
मायावती 65 वां जन्मदिन: बसपा सुप्रीमो मायावती देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रही हैं। वे एक सख्त प्रशासक के रूप में भी होना चाहिए, लेकिन मौजूदा राजनीतिक माहौल में उनके सामने चुनौती अपने वोट बैंक के साथ ही पुराने लोगों को अपने साथ रखने की भी है।
- News18Hindi
- आखरी अपडेट:14 जनवरी, 2021, 1:55 PM IST
अपने तीन दशक से लंबे समय के सियासी सफर में ऐसा पहली बार हुआ है कि उन्हें लगातार चार चुनाव हारने और पार्टी नेताओं की बगावत से जूझना पड़ा है। 2012 से अब तक मायावती अपने कई दिग्गज नेताओं को खो चुके हैं, इसलिए केवल उन लोगों के पास टिकट देने के आरोप नहीं हैं। बावजूद इसके मायावती ने अपने वोट बैंक को अपने पास संभाल के रखा है। बताओ अलग है कि उनका वोट बैंक सीटों में तब्दील नहीं हो गया है। गेस्ट हाउस कांड को भुलाकर 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने समाजवादी पार्टी से गठबंधन तो किया, लेकिन इसका लाभ उन्हें नहीं मिला। 2014 में जहां वे शून्य पर थे, 2019 में 10 अंक जीतीं, लेकिन उसके बाद हार का ठीकरा अखिलेश यादव पर फोडकर गठबंधन तोड़ दिया। अब एक साल बाद एक बार फिर अग्नि परीक्षा है। क्या वे इस बार असदुद्दीन ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर के साथ मिलकर मैदान में होंगे? यह एक बड़ा सवाल है।
ऐसा होना पॉलिटिकल करियर है
राजनीतिक जीवन के लंबे अनुभवों से गुजरने वाली मायावती 1989 में पहली बार सांसद बनी थीं। 1995 में वह अनुसूचित जाति की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। राजनीति में उनका प्रवेश कांशीराम की विचारधारा से प्रभावित होकर हुआ। राजनीति में आने से पहले मायावती शिक्षिका थीं। 21 मार्च 1997 को मायावती ने दूसरी बार यूपी की मुख्यमंत्री की कमान संभाली। 3 मार्च 2002 को मायावती तीसरी बार यूपी की मुख्यमंत्री बनीं और 26 अगस्त 2002 तक पद पर रहीं। 13 मई 2007 को मायावती ने चौथी बार सूबे की कमान संभाली और 14 मार्च 2012 तक मुख्यमंत्री रहीं।2001 में पार्टी की मिली कमान
2001 में बसपा प्रमुख और पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। 2002-2003 के दौरान भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन सरकार में मायावती फिर से मुख्यमंत्री बनीं। भाजपा ने समर्थन वापस लिया तो मायावती की सरकार गिर गई और सूबे की कमान मुलायम सिंह यादव के हाथों में चली गई। मायावती 2007 के विधानसभा चुनाव जीतकर फिर से सत्ता में लौटी और यूपी की कमान संभाली। 2012 के विधानसभा चुनावों में मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी चुनाव हार गई। तब से लेकर आज तक मायावती को कोई जीत हासिल नहीं हुई है और उनके पास सबसे बड़ी चुनौती बहुजन समाज के मोवमेंट को सँभालने की है।
भीम आर्मी के चंद्रशेखर सबसे बड़ी चुनौती
लगातार चुनाव हारने के बाद मायावती के सामने दलित वोट बैंक को बचाने की चुनौती है तो उसके साथ ही भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद भी हैं। चौतरफा चुनौतियों से घिरी मायावती परिवारवाद से लेकर कई आरोपों से घिरी हैं। इसमें कोई संभावना नहीं है कि 2012 के बाद से जीतने भी चुनाव हुए हैं, मायावती का अपने परम्परागत वोट बैंक से लगाव काम हुआ है। पॉलिटिकल पंडित रतनमणि लाल बताते हैं कि पार्टी नई पार्टियों की तरह कोई प्रयोग न कर परम्परागत रास्तों पर ही आगे बढ़ रही है। सोशल मीडिया और डिजिटल युग में जहां एक और अन्य दाल अपने को मजबूत कर रहे हैं वहीं बसपा यहां रेस में भी नजर नहीं आते हैं। इसके अलावा मायावती का मैदान में न उतरना भी एक प्रमुख कारण है कि वे अपने लोगों से दूर हैं।