नीमच संसार में रहते हुए जीवन का कल्याण करने के लिए धर्म प्रवृत्ति संयम और जीवन की उन्नति के गुणो को जीवन चरित्र में आत्मसात करना होगा। चाहे कितनी ही धन दौलत एकत्र कर ले यदि स्वयं की आत्मा पर विजय प्राप्त कर ले वही सच्चा नाथ होता है। धन दौलत परिवार सुख वैभव प्राप्त हो जाए इससे आत्म कल्याण नहीं होता है आत्म कल्याण धर्म प्रवृत्ति संयम को जीवन में आत्मसात करने से होता है।यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही। वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर भवन में आयोजित चातुर्मास धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि प्राणियों पर जीव दया करना चाहिए धरती पर जीवन जीना सभी का अधिकार है ठीक उसी प्रकार उत्तराध्ययन सूत्र के 22वें अध्याय में अरिष्ट नेमी राजमती, रथनेमी के माध्यम से धर्म के प्रति दृढ़ निश्चय रखने की प्रेरणा दी गई है ।विपरीत परिस्थितियों में भी धर्म पर अडिग रहने की प्रेरणा का संदेश दिया गया है।धर्म की राह पर चलते हुए राष्ट्र की रक्षा को परम कर्तव्य बताया गया है।धर्म हमें स्थिरता में रहकर आत्म कल्याण सीखाता है इस पर भी हमें ध्यान रखना चाहिए।उत्तराध्ययन सूत्र के 20वें अध्याय में अनाथि मुनि का अधिकार है ।राजा श्रेणीक को प्रेरणा दी की जीवन में धन दौलत सब कुछ नहीं है संयम के साथ जीवन की उन्नति ही सब कुछ है।,
उत्तराध्ययन सूत्र के 21वें अध्याय में बताया गया कि अपराधी को मृत्युदंड देने के लिए ले जाते समय यदि हम यह दृश्य देखते हैं तो हमारे मन में दया भाव आना चाहिएऔर हमें जीवन पर्यंत संकल्प लेना चाहिए कि हम कभी अशुभ कर्म नहीं करें ताकि हमें यह दृश्य नहीं देखना पड़े इसलिए हम जीवन पर्यंत जीवन के प्रत्येक पल शुभ कर्म करें ताकि हमारा पुण्य प्रबल रहे और ऐसा मृत्यु दण्ड हमारे जीवन में आए ही नहीं। प्रवर्तक विजय मुनि जी महाराज साहब ने कहा कि
मुक प्राणी की सेवा के लिए जीव दया करते हुए गो सेवा में सहयोग करना चाहिए तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। जीव दया का सदैव ध्यान रखना चाहिए। चूहा भी मुक प्राणी गणेश जी का वाहन है इसलिए चूहे को पिंजरे में पकड़ कर दूर जंगल में छोड़ देना चाहिए ताकि नुकसान भी नहीं हो और जीव दया का पालन भी हो जाए ।चूहे की हत्या नहीं करना चाहिए यह पाप है। ऐसे कर्म से सदैव बचना चाहिए।
साध्वी डॉक्टर विजया सुमन श्री जी महाराज साहब ने कहा कि पाप कर्मों की निर्जरा के लिए पुण्य का उपार्जन आवश्यक होता है। पुण्य 9 प्रकार के होते हैं ।दया का दान मन से होना चाहिए। जैसा दान करेंगे वैसा ही हमें वापस मिलेगा।इसलिए प्रयास करें कि अच्छे से अच्छा दान करें।जैसे अच्छे कपड़े पहनना हम पसंद करते हैं वैसे ही गरीब व्यक्तियों को दान करना चाहिए ताकि हमारा दान सफल और सार्थक सिद्ध हो सके। एक क्षण बाद हमारा क्या परिणाम होगा हमें ज्ञात नहीं है। मृत्यु जीवन का शाश्वत सत्य है।इसलिए हमें सदैव हर पल पुण्य कर्म करते रहना चाहिए पुण्य कर्म करने का एक पल भी नहीं गंवाना चाहिए कोई सा भी क्षण हमारा अंतिम क्षण हो सकता है।
महावीर निर्वाण दिवस के पावन उपलक्ष में 12 नवंबर को सुबह 9 बजे जैन दिवाकर भवन में जाप का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
तपस्या उपवास के साथ नवकार महामंत्र भक्तामर पाठ वाचन ,शांति जाप एवं तप की आराधना भी हुई।इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की।
धर्म सभा में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा., अरिहंतमुनिजी म. सा., ठाणा 4 आदि ठाणा का सानिध्य मिला। चातुर्मासिक मंगल धर्मसभा में समाज जनों ने बड़ी संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया और संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया। धर्म सभा का संचालन भंवरलाल देशलहरा ने किया।
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