नीम स्वयं की आत्मा को समझना तथा अंतरात्मा को पवित्र करना आवश्यक है।दूसरों पर विजय पाना सरल है लेकिन स्वयं को जीतना मुश्किल है ।अपने आप पर जो विजय पा लेता है उसे दूसरों को जीतने की जरूरत नहीं पड़ती है।
यह बातश्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में जाजू बिल्डिंग के समीप पुस्तक बाजार स्थित नवनिर्मित श्रीमती रेशम देवी अखें सिंह कोठारी आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि दूसरों पर विजय पाने वाला भी यदि अपने आप पर विजय नहीं पाता है तो उसकी जीत संपूर्ण नहीं होती है। उसका जीवन दुविधा में ही निकल जाता है।समय की सार्थकता के लिए पुण्य का पुरुषार्थ जरूरी है पुण्य के पुरुषार्थ से हर मंजिल को पाया जा सकता है।मनुष्य जीवन बहुत पुण्य वाणी से मिलता है इसमें धर्म आराधना कर आत्म कल्याण के मार्ग पर चलना श्रेष्ठकर होता है। मन की आत्मा को जगाने के महत्व आवश्यकता है।दूसरों को जीतना बहादुर नहीं होता खुद को जीत सके वह जीवन बहादुर होता है। आचार्य प्रसन चंद्र सागर जी महाराज ने कहा कि गोबर का लेप बहुत शक्तिशाली होता है जो इस लेप पर रहता है उसे कैंसर रोग भी नहीं होता है यह बात वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार की है।जब व्यक्ति दीक्षा लेता है तो परिवार समाज सब रोते हैं लेकिन उसमें उनका स्वार्थ होता है जो मेरा है वह जलता नहीं है जो जलता है वह मेरा नहीं है। आत्मा के विकार को दूर करना हीआत्मा की चिंता कर दीक्षा गुरु से दीक्षा ग्रहण करना चाहिए ।आत्मा को जीतने वाला शूरवीर महान होता है।उत्तराध्ययन सूत्र के दसवें अध्याय में धूम पत्रक अध्ययन किया है।
श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला। समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा में जावद ,जीरन, मनासा, नयागांव, जमुनिया,जावी, आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त सहभागी बने।धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।
दूसरों पर विजय पाना सरल है लेकिन स्वयं पर विजय पाना मुश्किल-आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी
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