Saturday, December 2, 2023
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ऑफर ऑफर, चुनावी ऑफर – किशोर  जेवरिया

दीवाली और चुनाव साथ-साथ हैं तो दोनों तरफ ऑफर की बाढ आई हुई है। दूकानों और शोरूम पर ऑफर आ रहे हैं। बाय वन गेट थ्री, फोर, वैसे ही विधानसभा के साथ सांसद, मंत्री, डबल इंजन की सरकार ट्रिपल इंजन की सरकार के ऑफर आ रहे हैं। ये अलग बात है कि वंदे भारत के इंजन से भैंस टकराकर इंजन को ही डेमेज कर रही है। भैंस तो टकराकर चल देती है पर ट्रेन वहीं रूक जाती है।
दीवाली पर बाय वन गेट थ्री, फोर शोरूम दूकानों पर तो मिल भी जाता है। ब्राण्डेड के नाम पर माल महंगा मिलता है उसी क्वालिटी का या उससे मिलता जुलता, उससे बहुत कम कीमत पर बाजार में मिल जाता है। चुनावी ऑफर मिलेगा ही इसकी कोई गारन्टी नहीं है। चुनाव में जो गारन्टी दे रहा है उसके काम की भी कोई गारन्टी नहीं है। बडे नेताओं के ऑफर भी जुमलों में बदल जाते हैं। इसी अविष्वसनीयता के चलते आजकल चुनावों से पांच-छह महीने पहले दिये जाने वाले ऑफर का सिलसिला शुरू हुआ है। ऑफर स्कूटी, लेपटॉप, नगदी और सिलेण्डर, बिजली के बिल में छूट के रूप में दिया जाने लगा है। मजे की बात है कि जनता के पैसे से दिये जाने वाले ऑफर मैंने दिया या मैं दे रहा हूं कहकर दिया जा रहा है।
एक ऑफर बहुत लोकप्रिय है ऋण माफी का, इसका ऑफर यह है कि ऋण लेने वाला जानता है कि चुनावों में माफी का ऑफर जरूर आएगा, इसलिए वह चुकाने की जहमत भी नहीं उठाता और जो इस ऑफर का इन्तजार किये बिना ईमानदारी से ऋण चुका रहा होता है, बेवकूफ बन जाता है। बडे ऋण वालों को ऑफर की जरूरत नहीं पडती वो तो लेकर विदेश भाग जाने का प्लान बनाकर ही ऋण लेता है। इसके लिए वह ऑफर देने वालों को पहले ही अपना ऑफर दे चुका होता है।
शोरूम व दूकानों पर मिलने वाला ऑफर लिमिटेड होता है पर चुनाव में दिया जाने वाला ऑफर अनलिमिटेड होता है इसलिये कर्जे पे कर्जा लेकर भी ऑफर दिया जाता है क्यांकि इसमें नेता को तो चुकाना है नहीं, चुकाना तो जनता को ही है, इसलिए बेहिचक कर्जा लिए जाता है। यह ऑफर दस-बीस या सैंकडा तक ही सीमित नहीं है, आजकल बाईस हजार तक पहुंच गया है।
बुनियादी जरूरतों वाले ऑफर ज्यादा असर डालने वाले देखे गए हैं। दो चार प्रान्तों में इसका प्रयोग सफल भी रहा है इसलिए आजकल चुनावों में यह ऑफर भी खूब चल रहा है।
कुछ ऑफर बीमा पॉलिसी की तरह भी होते हैं जो पांच, दस, बीस साल के लिये होते हैं। जैसे पांच साल तक ये मुफ्त मिलेगा या आज हमने इस ऑफर का एग्रीमेन्ट साईन कर दिया है दस साल बाद आपको यह मिल जाएगा। पांच दस साल सत्ता में रहे तो देखेंगे। वरना तो इस ऑफर से मुक्त हो जाएंगे।
पिछले कुछ चुनावों से इमोषनल ऑफर भी खूब चल रहा है। यह धर्म, जात, मंदिर, मस्जिद के रूप में दिया जा रहा है। जनता इस ऑफर को भी हाथों हाथ ले रही है पर हाथ में कुछ नहीं आ रहा है, इसके लिये ज्यादा कुछ नहीं करना पडता एक को दूसरे से भय बताना पडता है और अपने आपको उनका रक्षक। भावनाओं का यह ऑफर देश के लिये बडा घातक है इससे हमारे लोकतांत्रिक ढांचे को बहुत नुकसान हो रहा है। यह हमारे संविधान की आत्मा पर चोट करने वाला ऑफर है। आज भले ही यह वोट के लिए लोकलुभावन लगे परन्तु यह संविधान के बुनियादी को खत्म कर देगा।
यहां वोटर को यह समझदारी दिखानी चाहिए कि वह दिये जा रहे ऑफर को अच्छी तरह समझे। बिना समझे ऑफर के झांसे में आ गये तो फिर पांच साल के लिये गये। पांच सालों में तो गंगा में न जाने कितना पानी बह जाएगा। इसलिए गंगा के पानी को बहने मत दो इसे सहेजो और इसका सोच समझकर उपयोग करो।

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